क्या ऐसा कभी हुआ हैं?

क्या ऐसा कभी हुआ हैं के

तुम झांक रही हो अपने भीतर, और

अपने मन की बाल्कनी में

मुझको खड़ा पाया?

मैं बड़े जिज्ञासा के साथ

देख रहा हूँ, कौन - जा रहा है

तुम्हारी मन की गलियों में

मेरी मग्न अवस्था को देख

तुम आवाज लगाकर मुझसे पूछो

"तुम कब आएं?" और मैं

अचरज के साथ सोचू,

जिस ठाठ के साथ में यहाँ खड़ा हूँ

मानो जैसे, मैं ही मकान मालिक हूँ

फिर भी यह लड़की पूछती है, के कब आए?

याने एक तो मेरा हक़ जताना कमजोर है

या शायद

अब तक तुम यह नहीं मान पाई, के

तुम्हारे लाख तरक़ीबो के बावजूद

मैंने यह मकान कभी खाली किया ही नही।

-बागेश्री

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